पूर्वी एशिया में सांत्वना व संकल्प

वाशिंगटन, डीसी - आज जहां पूर्वी व दक्षिणी चीन सागर में चीन और इसके अनेक पड़ोसी देशों के बीच वर्चस्व को लेकर तनातनी चल रही है, वहीं संयुक्त राज्य अमेरिका को एक अधिक स्पष्ट क्षेत्रीय रणनीति की आवश्यकता है. साथ ही अमेरिका को अपने हितों तथा सहयोगियों से की गई प्रतिबद्धताओं की रक्षा भी करनी होगी ताकि अनावश्यक विवादों अथवा टकराव से भी बचा जा सके.

ऐसा करना अत्यंत कठिन होगा, खासकर इसलिए कि यह स्पष्ट नहीं है कि इस इलाके में विवादित द्वीपों और समुद्र से उभरी पर्वतशृंखलाओं पर किसके दावों को माना जाए. और अमेरिका का कतई इरादा नहीं है कि कोई समाधान थोपने की कोशिश की जाए. साथ ही अमेरिका को अपने सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण भी करना चाहिए ताकि नई चुनौतियों से निबटा जा सके - खासकर चीन के अभ्युदय से. आज जहां चीन सटीक मिसाइल प्रणालियां विकसित कर रहा है जिससे उसकी दूर-दूर तक मारक क्षमता बढ़ जाएगी, अमेरिका को इस बात पर विचार करना चाहिए कि इस क्षेत्र में स्थित अपने नौसैनिक अड्डों को बढ़ते खतरों से कैसे निबटा जाए.

इन चुनौतियों का कोई आसान जवाब नहीं है. जरूरत है अपने रवैये में थोड़ा बदलाव लाने की. अपनी नई पुस्तक स्ट्रैटजिक रीएश्योरेंस एंड रिजॉल्व में हमने इसी रणनीति का प्रतिपादन किया है.

हमारा मानना है कि अमेरिका की लंबे समय से चली आ रही ‘इंगेज बट हेज’ (उलझाओ और किनारे करो) की रणनीति को अपनाया जाए. इसके माध्यम से अमेरिका व इसके सहयोगी देश आर्थिक, कूटनीतिक और कभी-कभार सैन्य उपकरणों के माध्यम से चीन को शांतिपूर्वक ऊपर उठने के लिए प्रोत्साहन देते रहे हैं और साथ ही ताकतवर सैन्य क्षमताएं भी बनाए रखते हैं ताकि उलझाने की नीति के विफल रहने से उत्पन्न स्थिति से निबटा जा सके.

समस्या यह है कि किनारे करने की नीति को आमतौर पर अमेरिका की अपार और उत्कृष्ट सैन्य क्षमता को बनाए रखने के साधन की तरह देखा जाता है. लेकिन चीन द्वारा उन्नत हथियारों, जिनमें एंटी-शिप (जहाज ध्वस्त करने वाली) मिसाइलें भी शामिल हैं, के विकास व उन्हें हासिल करने से यह अव्यवहारिक हो जाता है कि अमेरिका इस क्षेत्र में दशकों तक अपने बलों को इनसे उत्पन्न खतरों को झेलता रहे और चीन के तटों के निकट सुरक्षित सैन्य कार्यवाई की क्षमता खो दे. अतीत में चीन स्वयं विदेशी अतिक्रमणकारियों के लिए कमजोर निशाना बना रहा है. इसके मद्देनजर अपार आक्रामक श्रेष्ठता कायम रखने के अमेरिका के एकतरफा प्रयास केवल अधिकाधिक अस्थिरताकारक हथियारों की होड़ को ही बढ़ावा देंगे.

कुछ अमेरिकी रणनीतिकार इस दुविधा के लिए बड़े तकनीकी समाधान की वकालत करते हैं. उनकी सोच, ‘एयर-सी बैटल’ (हवाई-समुद्री जंग) नामक अवधारणा आक्रामकता व रक्षात्मकता के मिलेजुले प्रयासों की हिमायती है जो सटीक प्रहार करने वाले हथियारों के प्रसार से उत्पन्न नई चुनौतियों से निबटने में सक्षम है.

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आधिकारिक तौर पर पेंटागन किसी खास देश के खिलाफ  ‘एयर-सी बैटल’ की अवधारणा का निर्देश नहीं देता है. मिसाल के तौर पर, ईरान के पास सटीक प्रहार करने वाली क्षमताएं होने और अमेरिका के साथ उसके कहीं अधिक कटु संबंध होने से अमेरिका के लिए जरूरी हो जाता है कि वह अपनी सुरक्षा को बढ़ते खतरों से निबटने के लिए जरूरी कदम उठाए.

लेकिन स्पष्टतः यह चीन ही है जिसके पास विश्वसनीय पहुंच-रोधी/क्षेत्र-निषिद्ध रणनीति विकसित करने के संसाधन हैं. यही बात अमेरिकी सैन्य नियोजकों को चिंतित करती है. सी-बैटल के कुछ हिमायती मिसाइल लॉन्चरों, राडारों, कमांड केंद्रों और शायद हवाई अड्डों तथा पनडुब्बी पत्तनों पर भारी रणनीतिक आक्रमणों का सुझाव देते हैं. इसके अलावा उनका सुझाव है कि इनमें से अनेक आक्रमण अमेरिकी क्षेत्र में तैनात लंबी-दूरी के अस्त्रों द्वारा किए जाएं नाकि इसके क्षेत्रीय सहयोगियों के इलाकों या समुद्र से. इसका कारण है कि इन हथियारों को स्वयं भारी हमलों से कम खतरा होगा.

दुर्भाग्यवश, एयर-सी बैटल के पीछे छिपा तर्क गलत गणना के गंभीर खतरे पेश करता है - जिनकी शुरूआत ही इसके नाम से होती है. स्पष्टतया एयर-सी बैटल युद्ध की अवधारणा है. हालांकि अमेरिका को साफतौर पर युद्ध योजनाओं की दरकार है. लेकिन उसे सावधान रहने की जरूरत भी है कि कहीं चीन व क्षेत्रीय सहयोगियों को यह संदेश ना जाए कि इसके नए विचार प्रतिरोधात्मकता को उसकी इस क्षमता पर आधारित करते हैं कि किसी लड़ाई की शुरूआत में ही विस्तृत पैमाने पर इसे फैला कर जल्दी और निर्णायक रूप से जीत लिया जाए.

एयर-सी बैटल उस एयर-लैंड बैटल विचार की याद दिलाता है जिसे 1970 दशक के उत्तरार्द्ध में और 1980 दशक के आरंभ में नैटो ने यूरोप को सोवियत संघ के बढ़ते खतरे का सामना करने के लिए अपनाया था. लेकिन चीन सोवियत संघ नहीं है और अमेरिका को इसके साथ अपने संबंधों में शीतयुद्ध की अनुगूंज से बचने की जरूरत है.

ज्यादा प्रभावी नीति के लिए ‘एयर-सी आपरेशन्स’ कहीं अधिक उचित नाम होगा. ऐसे किसी सिद्धांत में वर्गीकृत युद्ध योजनाएं शामिल हो सकती हैं; लेकिन इसे इक्कीसवीं सदी की व्यापक पैमाने वाली नौवहन गतिविधियों के गिर्द केंद्रित होना चाहिए जिनमें से कुछ चीन को भी लक्षित कर सकती हैं (यथा अदन की खाड़ी में समुद्री डाकुओं के खिलाफ चल रही गश्त तथा प्रशांत महासागर में कुछ सैन्य अभ्यास).

इसके अलावा, युद्ध योजनाओं को शुरूआत में ही विस्फोटक प्रसार पर निर्भर होने से बचना चाहिए, खास कर चीन की मुख्य भूमि पर और अन्य कहीं स्थित सैन्य साजोसामान के खिलाफ. अगर किसी विवादित द्वीप पर या जलमार्ग पर लड़ाई फूट भी पड़ती है तो अमेरिका के पास ऐसी रणनीति होनी चाहिए जिससे बिना लड़ाई के सभी पक्षों को मान्य अनुकूल समाधान निकल सके. सचमुच, चीन-अमेरिकी रिश्तों के व्यापक संदर्भ में ऐसी किसी भी मुठभेड़ में ‘जीत’ भी काफी महंगी पड़ेगी क्योंकि इससे चीनी सामरिक जमावड़े की शुरूआत हो सकती है जो इस तरह डिजाइन होगा कि भविष्य में किसी झड़प में एकदम अलग नतीजे निकाले जा सकें.

इसकी बजाए अमेरिका और उसके सहयोगियों को व्यापक परिसर वाली जवाबी नीति चाहिए जो उन्हें ऐसे उपाय अपनाने में समर्थ बना सके जो सामरिक हितों के अनुरूप हों. ऐसे उपाय जो ऐसी इच्छाशक्ति दर्शाते हों कि आत्मघाती प्रसार के बगैर सार्थक आर्थिक दंड थोपे जाएंगे.

इसी तरह अमेरिकी सेना के आधुनिकीकरण के एजेंडा में संतुलन की जरूरत है. चीन द्वारा अत्याधुनिक हथियारों के जखीरे जमा करने से अमेरिकी हितों को उत्पन्न खतरे का जवाब अमेरिका के लंबी दूरी तक मार करने वाले प्लैटफार्मों के विस्तार में नहीं है. दरअसल, ऐसा करने से अमेरिका के युद्ध नियोजकों को अपनी आपातकालीन योजनाओं में पहले वार करने के विकल्पों को शामिल करने का मौका मिलेगा और चीन के निकट अग्रिम मोर्चों पर अमेरिकी सेनाओं की दैनिक उपस्थिति पर जोर कम रहेगा जहां वे न्यूनतम प्रतिरोध बनाए रखने में अहम योगदान देते हैं. और फिर इससे चीन को भी बहाना मिल जाएगा कि वे अपनी पहुंच-रोधी/क्षेत्र-निषिद्ध क्षमताओं का और विकास करें.

इस क्षेत्र में अमेरिका की निरंतर उपस्थिति को शीत युद्ध के अनुभवों से सबक सीखने की जरूरत है कि किसी भी तरह का तकनीकी जुगाड़ संपूर्ण सुरक्षा नहीं उपलब्ध कराएगा. आर्थिक व राजनीतिक उपाय तथा अमेरिकी सेना की सतत उपस्थिति कहीं अधिक प्रभावी होगी बजाए इसके कि जब कभी अमेरिका को चीनी कार्यवाइयों से अपने महत्त्वपूर्ण हितों को खतरा दिखाई दे तो वह केवल आक्रामक रूप से व्यापक युद्ध छेड़ने पर ही निर्भर हो. निसंदेह, पूर्वी एशिया में नौवहन की स्वतंत्रता और साथी देशों के लिए प्रतिबद्धता की रक्षा के लिए चीन की मुख्य भूमि पर आक्रमण करने की क्षमता पर निर्भरता से चीन के नेताओं को यह परखने का मौका मिल सकता है कि क्या सेन्काकू द्वीपों की रक्षा के लिए अमेरिका लॉस एंजिलेस के नष्ट होने का खतरा उठा सकता है.

क्षेत्रीय स्थिरता बढ़ाने के लिए अधिक संतुलित अमेरिकी रणनीति के लिए संकल्प व आश्वस्ती का न्यायोचित मेल चाहिए और इसे दर्शाने के लिए सैन्य भंगिमा भी जरूरी है. इस नीति से अमेरिका को नायाब मौका मिलेगा कि वह चीनी नेताओं को इस क्षेत्र में इलाकाई विवादों के लिए अधिक सहयोगपूर्ण रवैया अपनाने को मना सके.

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