बॉन – पिछले महीने नवंबर में प्रकाशित एक क्रांतिकारी अध्ययन से यह पता चला है कि कोयला, तेल और गैस, और सीमेंट के केवल 90 उत्पादकों – जिन्हें "प्रमुख कार्बन उत्सर्जनकर्ता" का नाम दिया गया है – के कार्यकलापों के फलस्वरूप औद्योगिक क्रांति के बाद से कार्बन डाईऑक्साइड के सभी उत्सर्जनों में उनका अंश 63% रहा है।
यह रिपोर्ट फिलीपींस में टैक्लोबैन क्षेत्र में तूफ़ान हैयान (या जिसे स्थानीय रूप से योलान्डा कहा जाता था) की विनाशलीला के कुछ सप्ताह बाद ही जारी की गई थी। प्रति घंटे 315 किलोमीटर (196 मील) की अभूतपूर्व हवा की गति वाले इस तूफान से 6,300 लोग मारे गए, चार लाख बेघर हो गए, और इससे 2 बिलियन डॉलर से अधिक की क्षति हुई।
इसके बाद वारसा में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु-परिवर्तन सम्मेलन में प्रतिनिधियों ने हैयान और इससे हुई तबाही पर जमकर हो-हल्ला किया। इसकी प्रतिक्रिया के रूप में, वे जलवायु-परिवर्तन से संबंधित "नुकसान और क्षति" का समाधान करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय तंत्र स्थापित करने पर सहमत हुए, जिसे उन देशों में लागू किया जाएगा जो स्वयं को ग्लोबल वार्मिंग के बुरे प्रभावों के अनुकूल बनाने या उनसे रक्षा करने में असमर्थ हैं।
जो जलवायु-परिवर्तन के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं वही अक्सर उसके कारणों के लिए सबसे कम जिम्मेदार होते हैं, और उसके परिणामों से निपटने के लिए उनके पास सबसे कम संसाधन होते हैं। इसके विपरीत उन प्रमुख कार्बन उत्सर्जनकर्ताओं को लें जिन्होंने उन जीवाश्म ईंधनों से अपार दौलत हासिल की है जो जलवायु-परिवर्तन के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं। 2013 में, केवल चार बड़ी कंपनियों – शेवरॉन, एक्सॉनमोबिल, बीपी, और शेल – के संयुक्त लाभ $94 बिलियन से अधिक रहे। यह भारी-भरकम लाभ इसलिए संभव हुआ क्योंकि ये कंपनियाँ अपने उत्पादों की उच्चतम लागत - गरीब और कमजोर द्वारा वहन की जानेवाली जलवायु की तबाही - को अमल में लाती हैं।
इसलिए यह बिल्कुल उचित और तर्कसंगत लगता है कि जीवाश्म-ईंधन वाली सभी संस्थाएँ, परंतु विशेष रूप से प्रमुख कार्बन उत्सर्जनकर्ता, हानि और क्षति के लिए एक नए अंतर्राष्ट्रीय तंत्र को उत्पादित किए जानेवाले कोयले के प्रति टन, तेल के प्रति बैरल, या गैस के प्रति घन मीटर पर एक लेवी का भुगतान करें, जिससे जलवायु परिवर्तन के सबसे खराब प्रभावों को दूर करने के संबंध में की जानेवाली कार्रवाई के प्रयासों के लिए निधि प्रदान करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, यह देखते हुए कि जलवायु परिवर्तन के आज के प्रभाव अतीत के उत्सर्जनों का परिणाम हैं, प्रमुख कार्बन उत्सर्जनकर्ताओं को ऐतिहासिक लेवी का भुगतान भी करना चाहिए।
यदि इन लेवियों को प्रारंभ में प्रति टन कार्बन के लिए $2 की अपेक्षाकृत कम दर पर निर्धारित किया जाता है, तो इनसे $50 बिलियन प्रति वर्ष की दर से राशि जुटाई जा सकती है, हालाँकि इस दर को हर वर्ष बढ़ाया जाना चाहिए। इन राजस्वों से कमज़ोर देशों के जलवायु परिवर्तन से निपटने, दीर्घकालिक योजनाएँ विकसित करने, और साथ ही, नुकसान और क्षति को न्यूनतम करने, जानकारी साझा करने, और सर्वोत्तम प्रथाओं को दोहराने के उद्देश्य से पायलट परियोजनाओं को वित्त प्रदान करने के लिए मदद मिल सकती है। वे मौसम देरी से शुरू होने और चरम मौसम की घटनाओं पर निगरानी रखने और उनका पूर्वानुमान लगाने के लिए निधि प्रदान कर सकते हैं, जिससे अधिकारी और जनता किसी आसन्न आपदा के लिए अधिक प्रभावी ढंग से तैयारी कर सकें। और इस राशि से, व्यक्तिगत स्थानीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, या अंतर्राष्ट्रीय बीमा पॉलिसियों पर हानि-और-क्षति का जोखिम प्रीमियम कवर हो सकता है।
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सरकारें प्रमुख कार्बन उत्सर्जनकर्ताओं से लेवी संभवतः उसी समय वसूल करेंगी जब वे रॉयल्टी और अन्य निष्कर्षण संबंधी शुल्क प्राप्त करेंगी, और इस राशि को अंतर्राष्ट्रीय तंत्र के पास जमा कर देंगी। यदि नई लेवी को मौजूदा शुल्कों के साथ जोड़ा जाता है, तो इससे मूल्य संकेतक सुदृढ़ होकर जीवाश्म ईंधन से हटकर नवीकरणीय स्रोतों की ओर उन्मुख होगा।
यह जीवाश्म ईंधन लेवी जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के द्वारा स्थापित मानदंडों और अंतर्राष्ट्रीय कानून के "प्रदूषणकर्ता भरपाई करे" और "कोई क्षति न पहुँचाए" के सिद्धांतों के साथ पूरी तरह से संगत होगी, जिनके अनुसार संगठनों को उस क्षति के लिए भरपाई करनी होगी जो उन्होंने की हो। वास्तव में, यह व्यवस्था मौजूदा व्यवस्थाओं के समान होगी, जिनके अंतर्गत तेल फैलने या परमाणु क्षति के कारण दिया जानेवाला मुआवज़ा आता है।
लेकिन किसी की क्षति की लागत का भुगतान करना हालाँकि आवश्यक है, पर यह पर्याप्त से बहुत कम होता है। इसके बावजूद, क्षतिपूर्ति लेवी का अर्थ यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि प्रमुख कार्बन उत्सर्जनकर्ताओं ने वास्तव में प्रदूषित करने का अधिकार खरीद लिया है। हमें सबसे कमजोर लोगों को (और अपने आप को) नुकसान पहुँचाने से रोकने के लिए भी काम करना चाहिए। जब विश्व की सरकारें 2015 में पेरिस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु-परिवर्तन सम्मेलन में मिलेंगी, तो उन्हें, शुद्ध ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों को समाप्त करने और सदी के मध्य तक जीवाश्म ईंधन जलाने को रोकने के तरीकों पर सहमत होना होगा। कार्बन ट्रैकर के अनुसार, यदि हमें भयावह जलवायु परिवर्तन से बचना है तो जीवाश्म ईंधन के भंडार का 80% जमीन में ही रहना चाहिए।
यहाँ तक कि जलवायु परिवर्तन के आज के "कम" के स्तर पर, तबाही पहले से ही बहुत अधिक वास्तविक है। यह रिश्तेदारों का शोक मना रहे और घरों और जीवन के पुनर्निर्माण की कोशिश कर रहे फिलीपींस के नागरिकों के लिए; कंटेनरों में फसलें उगानेवाले, पीने के पानी का आयात करनेवाले, और अतिक्रमण करनेवाले सागर से अपने द्वीपों की रक्षा करने के लिए समुद्री दीवारों का निर्माण करनेवाले प्रशांत द्वीपों के वासियों के लिए; और साहेल में भूखे किसानों के लिए वास्तविक है। और यह दुनिया भर में अन्य लाखों कमजोर लोगों के लिए एक बढ़ती हुई वास्तविकता है।
ये लोग दुनिया से सहायता पाने के पात्र हैं - इन्हें सिर्फ नैतिक सहायता मात्र नहीं, बल्कि अतीत और वर्तमान के औद्योगीकरण द्वारा उन पर थोपी गई जलवायु-संबंधी कठिनाइयों को दूर करने या कम-से-कम कम करने के लिए बनाए गए प्रभावी, ठीक से वित्तपोषित तंत्रों के रूप में वास्तविक मदद चाहिए। प्रमुख कार्बन उत्सर्जनकर्ताओं के लिए, अब भरपाई करने का समय आ गया है।
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The US retirement system is failing American workers. But after decades of pushing fake fixes – especially forcing people to work longer – US policymakers have an opportunity to make real progress in bolstering Americans' economic security in old age.
proposes a Grey New Deal that would boost economic security for all US workers in old age.
From a long list of criminal indictments to unfavorable voter demographics, there is plenty standing between presumptive GOP nominee Donald Trump and a second term in the White House. But a Trump victory in the November election remains a distinct possibility – and a cause for serious economic concern.
बॉन – पिछले महीने नवंबर में प्रकाशित एक क्रांतिकारी अध्ययन से यह पता चला है कि कोयला, तेल और गैस, और सीमेंट के केवल 90 उत्पादकों – जिन्हें "प्रमुख कार्बन उत्सर्जनकर्ता" का नाम दिया गया है – के कार्यकलापों के फलस्वरूप औद्योगिक क्रांति के बाद से कार्बन डाईऑक्साइड के सभी उत्सर्जनों में उनका अंश 63% रहा है।
यह रिपोर्ट फिलीपींस में टैक्लोबैन क्षेत्र में तूफ़ान हैयान (या जिसे स्थानीय रूप से योलान्डा कहा जाता था) की विनाशलीला के कुछ सप्ताह बाद ही जारी की गई थी। प्रति घंटे 315 किलोमीटर (196 मील) की अभूतपूर्व हवा की गति वाले इस तूफान से 6,300 लोग मारे गए, चार लाख बेघर हो गए, और इससे 2 बिलियन डॉलर से अधिक की क्षति हुई।
इसके बाद वारसा में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु-परिवर्तन सम्मेलन में प्रतिनिधियों ने हैयान और इससे हुई तबाही पर जमकर हो-हल्ला किया। इसकी प्रतिक्रिया के रूप में, वे जलवायु-परिवर्तन से संबंधित "नुकसान और क्षति" का समाधान करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय तंत्र स्थापित करने पर सहमत हुए, जिसे उन देशों में लागू किया जाएगा जो स्वयं को ग्लोबल वार्मिंग के बुरे प्रभावों के अनुकूल बनाने या उनसे रक्षा करने में असमर्थ हैं।
जो जलवायु-परिवर्तन के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं वही अक्सर उसके कारणों के लिए सबसे कम जिम्मेदार होते हैं, और उसके परिणामों से निपटने के लिए उनके पास सबसे कम संसाधन होते हैं। इसके विपरीत उन प्रमुख कार्बन उत्सर्जनकर्ताओं को लें जिन्होंने उन जीवाश्म ईंधनों से अपार दौलत हासिल की है जो जलवायु-परिवर्तन के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं। 2013 में, केवल चार बड़ी कंपनियों – शेवरॉन, एक्सॉनमोबिल, बीपी, और शेल – के संयुक्त लाभ $94 बिलियन से अधिक रहे। यह भारी-भरकम लाभ इसलिए संभव हुआ क्योंकि ये कंपनियाँ अपने उत्पादों की उच्चतम लागत - गरीब और कमजोर द्वारा वहन की जानेवाली जलवायु की तबाही - को अमल में लाती हैं।
इसलिए यह बिल्कुल उचित और तर्कसंगत लगता है कि जीवाश्म-ईंधन वाली सभी संस्थाएँ, परंतु विशेष रूप से प्रमुख कार्बन उत्सर्जनकर्ता, हानि और क्षति के लिए एक नए अंतर्राष्ट्रीय तंत्र को उत्पादित किए जानेवाले कोयले के प्रति टन, तेल के प्रति बैरल, या गैस के प्रति घन मीटर पर एक लेवी का भुगतान करें, जिससे जलवायु परिवर्तन के सबसे खराब प्रभावों को दूर करने के संबंध में की जानेवाली कार्रवाई के प्रयासों के लिए निधि प्रदान करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, यह देखते हुए कि जलवायु परिवर्तन के आज के प्रभाव अतीत के उत्सर्जनों का परिणाम हैं, प्रमुख कार्बन उत्सर्जनकर्ताओं को ऐतिहासिक लेवी का भुगतान भी करना चाहिए।
यदि इन लेवियों को प्रारंभ में प्रति टन कार्बन के लिए $2 की अपेक्षाकृत कम दर पर निर्धारित किया जाता है, तो इनसे $50 बिलियन प्रति वर्ष की दर से राशि जुटाई जा सकती है, हालाँकि इस दर को हर वर्ष बढ़ाया जाना चाहिए। इन राजस्वों से कमज़ोर देशों के जलवायु परिवर्तन से निपटने, दीर्घकालिक योजनाएँ विकसित करने, और साथ ही, नुकसान और क्षति को न्यूनतम करने, जानकारी साझा करने, और सर्वोत्तम प्रथाओं को दोहराने के उद्देश्य से पायलट परियोजनाओं को वित्त प्रदान करने के लिए मदद मिल सकती है। वे मौसम देरी से शुरू होने और चरम मौसम की घटनाओं पर निगरानी रखने और उनका पूर्वानुमान लगाने के लिए निधि प्रदान कर सकते हैं, जिससे अधिकारी और जनता किसी आसन्न आपदा के लिए अधिक प्रभावी ढंग से तैयारी कर सकें। और इस राशि से, व्यक्तिगत स्थानीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, या अंतर्राष्ट्रीय बीमा पॉलिसियों पर हानि-और-क्षति का जोखिम प्रीमियम कवर हो सकता है।
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यह जीवाश्म ईंधन लेवी जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के द्वारा स्थापित मानदंडों और अंतर्राष्ट्रीय कानून के "प्रदूषणकर्ता भरपाई करे" और "कोई क्षति न पहुँचाए" के सिद्धांतों के साथ पूरी तरह से संगत होगी, जिनके अनुसार संगठनों को उस क्षति के लिए भरपाई करनी होगी जो उन्होंने की हो। वास्तव में, यह व्यवस्था मौजूदा व्यवस्थाओं के समान होगी, जिनके अंतर्गत तेल फैलने या परमाणु क्षति के कारण दिया जानेवाला मुआवज़ा आता है।
लेकिन किसी की क्षति की लागत का भुगतान करना हालाँकि आवश्यक है, पर यह पर्याप्त से बहुत कम होता है। इसके बावजूद, क्षतिपूर्ति लेवी का अर्थ यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि प्रमुख कार्बन उत्सर्जनकर्ताओं ने वास्तव में प्रदूषित करने का अधिकार खरीद लिया है। हमें सबसे कमजोर लोगों को (और अपने आप को) नुकसान पहुँचाने से रोकने के लिए भी काम करना चाहिए। जब विश्व की सरकारें 2015 में पेरिस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु-परिवर्तन सम्मेलन में मिलेंगी, तो उन्हें, शुद्ध ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों को समाप्त करने और सदी के मध्य तक जीवाश्म ईंधन जलाने को रोकने के तरीकों पर सहमत होना होगा। कार्बन ट्रैकर के अनुसार, यदि हमें भयावह जलवायु परिवर्तन से बचना है तो जीवाश्म ईंधन के भंडार का 80% जमीन में ही रहना चाहिए।
यहाँ तक कि जलवायु परिवर्तन के आज के "कम" के स्तर पर, तबाही पहले से ही बहुत अधिक वास्तविक है। यह रिश्तेदारों का शोक मना रहे और घरों और जीवन के पुनर्निर्माण की कोशिश कर रहे फिलीपींस के नागरिकों के लिए; कंटेनरों में फसलें उगानेवाले, पीने के पानी का आयात करनेवाले, और अतिक्रमण करनेवाले सागर से अपने द्वीपों की रक्षा करने के लिए समुद्री दीवारों का निर्माण करनेवाले प्रशांत द्वीपों के वासियों के लिए; और साहेल में भूखे किसानों के लिए वास्तविक है। और यह दुनिया भर में अन्य लाखों कमजोर लोगों के लिए एक बढ़ती हुई वास्तविकता है।
ये लोग दुनिया से सहायता पाने के पात्र हैं - इन्हें सिर्फ नैतिक सहायता मात्र नहीं, बल्कि अतीत और वर्तमान के औद्योगीकरण द्वारा उन पर थोपी गई जलवायु-संबंधी कठिनाइयों को दूर करने या कम-से-कम कम करने के लिए बनाए गए प्रभावी, ठीक से वित्तपोषित तंत्रों के रूप में वास्तविक मदद चाहिए। प्रमुख कार्बन उत्सर्जनकर्ताओं के लिए, अब भरपाई करने का समय आ गया है।